खालीपन
उस बहकी बरसात में
जहाँ पे मन में
कोई सोच न थी
कोई आवाज़ न थी
कोई शोर न था
कोई अनजानी हरकत
कोई बेरुखी शरारत
कोई नयी खबर
कुछ भी न थी
मैं उस पल में
अपने अंदर यूँ ही
झाँक रहा था
क्या है मेरे पास
और क्या नहीं
इस सवाल का जवाब तो दूर
इस सवाल की ही
कोई बुनियाद न थी
मैं बस यूँ
ही सोच रहा था
कि मेरे पास
ऐसा कुछ नहीं है
जिसके लिए मैं
या तो लड़ जाऊ
या थम जाऊ
या सारी हदें पार कर
दूर कहीं बस
यूँ ही चैन की
गोद में उस सच के
साथ कहीं खो जाऊँ
पर मेरा सच
मेरा सच इस लायक
है ही नहीं
जहां अमन के
संसार में परिंदे
खुशिया बांटते हैं
मैं सिर्फ एक
मूल कठोर सच्चाई का
अधूरा टुकड़ा सा हूँ
जिसके पास न खोने
न कुछ पाने
और न कुछ लड़ जाने
लायक सच है
सिर्फ एक उम्मीद है
शायद एक दिन
मेरे पास
वो एक सच होगा
जिस की तलाश में
राहों के किनारे पे
आसमां में उड़ते परिंदों
की संग घुलने मिलने वाली
खुशी
मेरी सच्चाई का टुकड़ा होगी
शायद उस दिन मेरे पास
अपने सवाल का मूल होगा
उस सवाल का जवाब मेरा सच
होगा
जिस सच की तलाश में एक दिन
दुनिया से लड़ जाने का जज़्बा
होगा
उस दिन ही शायद
मैं ऐसी ही किसी और बारिश
में
मेरे मन में खयालो की
खलबली होगी
क्या दिन थे वो
जब मन में न सवाल थे
न सोच थी
था सिर्फ एक कड़वा सा
खालीपन ||
No comments:
Post a Comment