Saturday 29 December 2012

मायूस बगिया

कुछ रोज़ खुशिया बरसती थी शामो में
हम गरीबों के मेले में सांसें ढूंढ रहे थे
अजीब थी उस बगिये कि खुशबु 
जहां तितलियाँ आज़ाद थीं 
फूलों पर डगमगाने के लिए
पर मैं देखता हूँ उसी बगीचे साथ रहने वाले पड़ोसियों को
जिनको शायद मायूस फूलों कि नमी महसूस ही नहीं होती
सिर्फ समझ आता है उनको तो शोर और मतलब
बगैर खिलखिलाती खुशिओं के
उस मुरझाते हुए बगीचे में
क्या रोती हुई खामोशी मेहसूस नहीं होती?
क्या हमें समझ नहीं आता
कि हमने जिस खूबसूरती को सीचने के वादे किये थे
हम उसी को नोच बैठे?
एक शाम शायद सपनो में ही थी
जहां तितलियाँ खेलती थी
उस बगीचे में खुशबू थी
दुनिया सांस ढूंढती थी
सपना ही रहा होगा शायद,
क्योंकि जहां हम हैं
वहाँ खुशियाँ तो शोर में ही हैं
जहां कभी शोर में होती थी सिर्फ तकलीफें
और शिकायतें ||

RIP That Girl, who said she wanted to live, and Independent India.