Thursday 6 September 2012

कल्पना

आगे पीछे
आपस में
या दूर कहीं
शीशे की ओर
कही, कोई परछाई
कोई तलाश अधूरी
कल का क्या
खो गया कही
सामने तस्वीर
घुल गयी कहीं
किसी धुंध भरी शाम में
कुछ नहीं दिखा
किसी अधूरे सपने में
कुछ नहीं सोचा
ये कर लेते
या वो कर लेते
या वो भी कर लेते
कुछ न कर पाते कभी
जिस धुंध में चल रहे थे
उसी में चलते रहेंगे
कभी तो राह ख़तम होगी
कभी तो नया मोड़ आएगा
या आएगा वही
पुराना , देखा हुआ रास्ता
चल पड़ेंगे फिर वहीँ
जहां से आये थे
बाकी सब तो
दो पल का ख्याल है
अभी एक है
कल एक और होगा
फिर एक और
सपनो में सांस लेते है
सच्चाई में सपने बुनते है
आखिर में
सच्चाई सपने धुंध
सबका रंग एक
बाकी सब तो
दो पल का ख्याल है
अभी एक है
कल एक और होगा
फिर एक और ||