Tuesday 28 October 2014

That tired soul

I start from work,
For home,
At six thirty,
In the evening.

I’d be home,
Typically,
By eight, in the evening.

I start from work,
A little early,
Today.

I take a shared cab,
Auto, we call it,
It’s an eight seater,
Hoodless,
Winger,
Or its variant.

I enter the cab,
That eight seater,
To see it’s full.

But there’s some space,
Driver tells me,
So I enter.

After a few stops,
Some drop by,
I get enough space.

Cab reaches its last stop,
I step down,
I walk across the traffic signal,
With a traffic ready to kill,
To reach home early.
I am not in a hurry,
So I wait,
For my turn.
I walk,
So I get my turn,
Quite easily.

But,
As it takes,
It takes time,
Till I get one.

But I do,
So I walk,
And reach,
The next bus stop,
And wait.

I have,
A piercing,
Bowing, shoulder ache.

From my chest,
Piercing through my shoulder,
And my arm.
So I wait,
For a bus with space.

I get a bus,
With space enough,
For me to find,
Some space,
To place,
My bag,
And my back,
And the back,
Of my hand.

The bus reaches its last stop,
I step down.

My house is away,
From the last bus stop,
Of the bus,
I just talked,
By a Kilometer,
And a quarter.

So I walk,
Because,
The shared cab,
The eight seater,
Will adjust twelve.

So I walk,
Like everyday,
With a shoulder ache,
So I walk,
Slowly,
But I walk,
Like everyday.

I look at my phone,
Not to talk,
But to check the time,
It says seven: forty eight,
I am half a kilometre,
Away,
From my place,
An apartment.

I get a poem in my mind,
No way can I complete,
Before eight,
In the evening,
I think.

I might just begin writing,
I think,
Before eight,
In the evening,
If I rush.

But I got,
A shoulder ache,
Starting from my chest,
And piercing through my shoulder,
Right across my arm.

So I walk,
But I don’t rush,
I reach the block,
I walk through its pathway,
Climb up the stairs,
Unlock the doors,
I enter my apartment.

I shut my door,
I check my phone,
Not to talk,
But for time,
It’s seven: forty,
In the evening.

How is it so?
I actually saw,
Something like seven: twenty eight,
Or seven: eighteen,
In the evening,
But this tired soul,
Had lost before playing,
It read seven: forty eight,
In the evening,
Even though,
It wasn’t.

I tell myself,
I can finish this poem,
If I rush,
Before Eight,
In this evening.

I won’t rush,
I don’t want to,
I change my clothes,
Hit the loo,
Lighten up,
I check my second phone,
Not to talk,
But for its internet connection,
It’s my internet hardware,
Too.

I set up my second phone,
As a Wi-Fi hot spot,
Turn my computer on,
It automatically connects,
To the Wi-Fi hot spot,
And I check my phone again,
It tells me it’s seven: forty six,
In the evening.

If I hog my keyboard,
Rush my thoughts,
I can still complete the poem,
By eight,
In the evening.

So I run the software,
I use,
To write,
And, I write.

And then,
I check my phone,
For it,
Is ringing,
A friend is calling,
Wanting to talk.

So I talk,
I talk and talk and talk,
To froth,
And to flock,
On our lives,
And our times.

I lost,
Because I am late
Way too late,
Was too late,
And will always be.

There was never,
Ever a way,
To finish this poem before eight,
In the evening.

It is,
After all,
Mine,
And I,
And I alone,
Get to choose when I want to end it.





Monday 27 October 2014

आखिरी

मैं गंद की उपजाई,
मुझे गंद नसीब,
मेरी सांस से पिघलती दीवारे हैं,
यूँ पिघले गोश्त सी कडवी मेरी आवाजें हैं |

इस सीने में धड़कती रूह नहीं,
आसुओं से पिघलती आबरू है,
कोई दुनिया नहीं,
कोई आवाज़ नहीं,
भूख से बिलखती आरज़ू है |

नहीं मिले वो घरो के आँगन,
जो अपने ही हाथों हमने जला डाले थे,
सारे पाप मेरे थे,
और कीमत भी मैंने ही चुकाई थी |

किसी दिन मूंदी आँखों के साए में,
जिस गंद से निकला था मैं,
उसी में मिल जाऊँगा,
आज तक अपनी साँसों की बू यूँ खली नहीं थी,

आज किस्मत भी चिल्ला उठी दबाने के लिए ||

Sunday 5 October 2014

Indian Engaged evenings - a play










  Indian Engaged Evenings

a play


Written by
Salil Shankar





Scene 1
Curtain call, a narrator comes on stage, on the left hand side of the stage, (note: all directions from the audience perspective) , on center stage there are 4 chairs kept. On both the sides of stage, there are wooden partitions, beyond the partitions there are more chairs, simply to for extras to sit. Narrator begins talking, he is wearing a white shirt, a blue jeans, he bears spectacles, and a couple of brown nubucks. He also plays a part in the play.
NARRATOR
रोज़ कहने वाले मिलते हैं, सुनाने वाले, सुनने वाला तो आजकल extinct species में गिना जाता है | मगर तकलीफ सबसे बड़ी ये है, की साला सुनने वाला भी आजकल सुनता नहीं है | कहने के लिए तो काफी सारी बातें हम सभी के पास हैं, कोई कोई सुन भी लेता है, पर समझता कोई भी नहीं है | हर कहानी के किरदार के लिए मैं होता हूँ, बाकी दुनिया को ये समझाने के लिए, की वो कहना क्या चाहता है | पर अगर कोई कुछ कहना चाहता है, तो आजकल की दुसरे के नुक्सान में तसल्ली ढूँढने वाली society का मतलब कुछ और ही होता है | इंसान हैं, कहाँ जाएंगे, इंसान बन के पैदा हो गए यही बहुत बड़ी मुसीबत हो गयी, जब से पैदा हुए तब से न तो खुद खुश हैं, न अगल बगल में रहने वाले लोग, और vice versa |
behind a man comes on stage and sits on of the chairs kept. Narrator continues without interruption.
NARRATOR
आखिर बुराई लेने का मतलब भी मुसीबत गले लगाना है | हम जिस नरमी गर्मी से इंसानियत के नाम की बुराई गले में घोट बैठे उसके चक्कर में आजतक ज़बान से ज़हर ही उगल रहे हैं. कहने के लिए बातें हैं. शर्मा जी उस रोज़ अपनी बीवी से झगढ़ बैठे. बीवी कह रही थी उन्हें चप्पल खरीदनी है, शर्मा जी आलसियों की तरह आलस कर रहे थे | आलस ही आलस में कुछ भला बुरा कह दिया | यूँ तो कोई फर्क नहीं पड़ता | Indian Society में औरतों ने भी standard fix कर रखें हैं, और आदमी तो होता ही नीच है|
SHARMA JI
अरे क्या भई? किस बात का नीच? हैं? अब रवि वार को शाम 6 बजे मेमसाब कहेंगी चप्पल खरीदनी है, तो मैं तो बाज़ार जाने से रहा.
NARRATOR
(faces the audience again)
आम साधारण जीवन के चोंचले. weekend में सोयेंगे, weekday में office जाएँगे. बीवी से झगडा करेंगे, और बच्चों के खर्चे उठाते रहेंगे. कोई बुराई नहीं है. आखिर इंसान जो है, मजबूर है, जो जानवर होते, तो भी मजबूर ही होते. पर कहानियाँ एक आदमी से नहीं बनती.
another actor comes on stage and occupies another seat.
NARRATOR
(continues without interruption)
इस दुनिया में यूँ तो बहुत category के लोग हैं, मगर dialogue बोलने में अच्छा लगता है इसलिए बोल रहा हूँ. इस दुनिया में 2 तरह के लोग होते है, एक, जो चोरी करते हैं, दो, जो बहुत बड़ी चोरी करते हैं. मगर चोरी सब करते हैं. कोई अपने आप से करता है, कोई पडोसी से, कोई emotions की चोरी करता है, कोई financial level पे चोरी करता है. विराग मेहता ने इस दुनिया में बहुत चोरी की, बड़ी वाली भी और छोटी वाली भी.  अपने biological बाप से लेकर अपने professional बाप तक ऐसा कोई सगा नहीं जिनको इसने ठगा नहीं. लोगो को बता कर चुराता है, कोई कमजोरी वाली बात नहीं है. अब, खुद का business है, computer hardware भेजते हैं, घर घर. एक भी delivery miss नहीं करते.
VIRAAG MEHTA
अरे Customer base है यार, loyalty बना के रखी है. कहीं चाचा/मामा के यहाँ PC assemble कराना हो तो बताना, पडोसी होने का special discount, दिलवाऊंगा.
NARRATOR
(faces the audience once again)
पता नहीं, जिस दिन से पैदा हुआ हूँ, जहां भी discount लिखा देखा है वहीँ बेवक़ूफ़ बना हूँ. इसलिए अब तो कहीं discount मिलता भी है तो खरीदने से पहले पचास बार पूछ लेता हूँ ऊपर लगे star का मतलब कब कहाँ और कैसे बदलता है. और अगर किसी आदमी ने कहा की वो discount दिलवाएगा तो पक्का 30 पैसे छोड़ेगा 30 साल इसका एहसान जताएगा और black mail करेगा....... इसलिए पैसा फेंको तमाशा देखो. इस झमेले में सबसे जादा तकलीफ झेलने वाला सबसे शरीफ आदमी, अपने आप को भगत कहता है..... नाम ही भगत है..... शरीफ तो कोई नहीं होता, बस relatively consider किया जाता है. मैं इसके बारे में जादा नहीं जानता, सिवाए इस बात के की इसकी कुछ समझ नहीं आता.
another man comes on the stage and occupies another chair on stage.
NARRATOR
इस गंदगी कि शुरुआत कहाँ से हुई किसी को पता नहीं, सिर्फ इतना पता है, भगत कल रात वापस आया, काम करके, call center में काम करता है, मजबूरी भी कई तरह की होती हैं, एक मामूली लड़का, जिसका न पढ़ाई में मन लगता हो न खेल में, उसकी समझ ही नहीं आता क्या सही क्या गलत. इस अलसाती हिन्दुस्तानी mentality के बीच में पैदा हो गया, जहां सिर्फ पढाई में engineer/doctor ही समझ आते हैं, और काम करने के लिए Cubicle वाला 9 से 6 का काम रह जाता है, तो दुनिया में सिर्फ सुनने को ताने और करने के लिए कुछ नहीं रह जाता.
BHAGAT
मेरी क्या गलती यार? जितना कर पाया उतना किया.
NARRATOR
(facing the audience again)
गलती किसी की नहीं होती, कई बार तो दुनिया में यही सोचते रह जाते हैं लोग की उनको करना क्या है. इतने में ही बुढापा आ जाता है. हम इंसान चार पल की सांस खींच लेते हैं तो ये दिमागे में चलने लगता है किस तरह पूरी दुनिया भर की सांस रोक के अपने फेफड़े फुला दे |
from behind a man in white robes appears the stage, wearing sage like clothes, interrupting the Narrator, a very old man, balding, perhaps in his 60s. One of those nasty old men who just can't digest the changing societies and mentalities, yet educated enough to show off his English when required.
SHASTRI JI
घुमा घुमा के बात करोगे तो किसी की भी समझ नहीं आएगा की तुम इस दुनिया को उसकी कमजोरी, जो की और कुछ नही बल्कि दूसरो की तकलीफ में खुशिया ढूँढने की आदत के बारे में बता रहे हो.
NARRATOR
सिर्फ आप ही की कमी थी शास्त्री जी, रोज़ रोज़ हरेक बात का उल्टा मतलब निकालना आपका कर्त्तव्य है क्या?
SHASTRI JI
बेटा, ककड़ी खेत में ख़याल हों, तो....
NARRATOR
टमाटरों की बातें नहीं करते, जी, मैं जानता हूँ धन्यवाद, बैठ जाइये.
SHASTRI JI
मगर तुमने मेरी बात पूरी....
NARRATOR
शास्त्री जी, दीदी की सगाई है, बैठ जाइये, आधे घंटे में खाना मिलना शुरू हो जाएगा, खा लीजियेगा, आज मकई की सब्जी भी बनी है.
facing the audience
NARRATOR
आज दीदी की सगाई है, हमारे समाज में हर तरह के लोग हैं. क्योंकि हम समाज का हिस्सा हैं, इसलिए हर किसी को निमंत्रण देना होता है, हम लड़की वाले हैं, इसलिए कुछ नुक्सान हमें ही झेलने होते हैं, उन नुकसानों में से सबसे बड़ा नुक्सान इन मेहमानों को झेलने का होता है, जिनके पास दुनिया भर का ज्ञान होता है बांटने के लिए. तकलीफ हर इंसान की यही है, की दोस्ती, भाईचारा, equality, सिर्फ बातों तक ही रह जाती है. सोच गलत ही थी, है, और जब तक चोट नहीं पड़ती, गलत ही रह जाती है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की उलझने वाला आदमी या औरत, सही या गलत, अच्छा या बुरा, फिलहाल, सभी सही और सभी गलत. किसी को कुछ नहीं पता, दुनिया पे रौब झाड़ने वाले नज़रिए से जंगल का 8 फीट का शेर भी बिल्ली लगता है, और अगर गली के कुत्ते ने रात में दौड़ा लिया तो पांच दिन तक रजाई छोड़े बिना अपने बाप को याद कर करके मिमियाता रहेगा.
A woman comes on stage and calls the narrator. She is Narrator's Mother.
BHAWNA
(yells)
गुड्डू
NARRATOR
(replies)
हांजी मम्मी
BHAWNA
जा बेटा, थोडा काम करा दे, पापा खड़े हैं हलवाई के बगल में, अलमारी में plastic के बर्तन हैं, पहुंचा दे ज़रा पापा के पास.
NARRATOR
हांजी मैं वो मेहमानों को बिठा रहा था.
BHAWNA
(addressing the guests)
अच्छा, अच्छा, आ गए? अरे वाह शर्मा जी, भाभी जी नहीं आई?
all guests rise from their places, greet her
SHARMA JI
जी वो....
SHASTRI JI
अरे भावना जी, आप भी क्या सवाल करती हो, जिस दिन इस दुनिया में लंगूर संग शेरनी टहलने लगेगी उस दिन जंगल में समझ जाना इंसानों ने democracy establish कर दी है.
BHAWNA
(laughs half-heartedly, trying to cope with the absurdity of the joke)
जी.... शास्त्री जी... घर पे सब ठीक ठाक है ना?
SHASTRI JI
भावना जी जहां लड़कियों के चक्कर में लड़के दुबई पहुँच रहे हों वहाँ ठीक क्या होगा?
BHAWNA
अरे बड़ा भैया दुबई चला गया? ये तो खुशखबरी हुई ना? उसको तो बहुत दिनों पहले ही वहां नौकरी मिल गयी थी?
SHASTRI JI
क्या नौकरी है भावना जी? अलग अलग जगह जाके plant का inspection करो. धक्के खाते रहो.
BHAWNA
शास्त्री जी, कमा तो अच्छा रहा है?
SHARMA JI
भाभी जी, कमाने से कोई दिक्कत नहीं थी संत शास्त्री जी को, वो तो छोकरी पा गया दुबई में इसलिए जिद करके चला गया. इसलिए तो शास्त्री जी के मुरझाते हुए माथे में परेशानी की लकीरें गहराई जा रही हैं.
SHASTRI JI
शर्मा जी, ऐसा है, आपको कुछ पता तो है नहीं, रोज रात को बीवी की गालियाँ खा के सोते हो ...
SHARMA JI
अरे आप कौन...
Environment starts heating up, Narrator, Viraag Mehta,  intervene
NARRATOR
uncle, uncle, आराम आराम से,
SHASTRI JI
अरे...
VIRAAG MEHTA
अरे कहाँ शास्त्री जी, छोडो न शर्मा जी को, हर आदमी की अपनी अपनी तकलीफ होती है, बैठो, शर्मा से दूर बैठो आप, आप इधर बैठो, आखरी वाली पे
SHASTRI JI
अरे मैं यहीं बैठा था यार
VIRAAG MEHTA
हाँ तो फिर से बैठ जाओ, उधर मुंह करके बैठ जाओ
they all settle down, all of them knowing there's nothing to say. Shastri Ji looks away, narrator, finds the right moment and speaks, after a while.
NARRATOR
ठीक है, आप लोग आराम करिए, मैं snacks भिजवाता हूँ.
seeks their permission, his mother exits, he accompanies her and leaves the stage. after a while Viraag Mehta starts talking to Bhagat.
VIRAAG MEHTA
यार, भगत, तुम्हारे office में कोई computer पे काम नहीं करता?
BHAGAT
Uncle, मैं call center में काम करता हूँ.
VIRAAG MEHTA
अच्छा हाँ हाँ यार, तुम्हे तो company देती है.
he thinks for sometime
VIRAAG MEHTA
यार एक काम करेगा?
BHAGAT
जी बताइए?
VIRAAG MEHTA
एक computer उठा ले आएगा?
BHAGAT
जी?
VIRAAG MEHTA
अबे, देख, तेरे यहाँ तो कबाड़ में जाते होंगे ना COMPUTER? एक उठा ले यार, देख, 6 पैसे कमाएँगे, 4 पैसे मैं कमा लूँगा, 2 पैसे तू कमा लेना.

BHAGAT
जी क्या चाहते हो? मैं नौकरी से निकल जाऊं?

VIRAAG MEHTA
यही तो दिक्कत है आज की generation में. risk लेना ही नहीं आता. बेटा, life में कुछ बड़ा करना हो तो, risk लेना पड़ता है.

narrator comes on stage, as everyone rises, and leaves the stage, curtain falls behind the narrator. Narrator starts talking to the audience.
NARRATOR
Risk तो लेना ही पड़ता है. छोटा या बड़ा. हर कोई लेता है. मेरी दीदी ने लिया, शादी करने का, अपने boyfriend से शादी करने का. जीजा कोई सलमान खान नहीं हैं. बहुत ordinary है. अब आप सोचेंगे की मेरी बेहेन कोई ऐशवर्या राए है? जी नहीं, नहीं है. मुझे मेरे जीजा के ordinary होने से कोई दिक्कत नहीं है. मुझे ordinary Indian सोच से दिक्कत है. जिस हिसाब से हमारी माता चाहती थी, लड़का इसी शहर में रहे. जो की नहीं हुआ. जिस तरह शास्त्री जी चाहते थे, और हमारे पिताजी को influence करते थे, की ऐसे परिवार वालों से शादी कराना जहां घर में इतने पैसे हों की अगर लड़के का दिवाला निकल जाए तो भी कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. जो की बिलकुल नहीं हुआ. उल्टा लड़के वालों ने ये तक कह दिया की वो चाहते हैं दीदी काम करती रहें. Bangalore जाके रहना पड़ेगा, यहाँ वाली नौकरी तो छोड़ ही दी है, मगर उनका लड़का इकलौता है, और वो उसपे dependent हैं. अगर दीदी काम करेंगी तो जीजा पे थोडा burden कम हो जाएगा. मुझे बड़ा अच्छा लगा पर Misogynist society है, यहाँ संत भी नर और अमर भी, भगवान भी नर और इंसान भी. किसी भी कहानी में, अगर लड़ाई हुई तो औरत को लेकर, मगर development मर्दों को लेकर, कहानी बनाने वाले भी misogynistic थे. जब भी औरतों ने हक़ जमाया तो automatically उनकी population down हो गई. हालत ये हो गयी, की अब औरतें भी misogynistic हो गयी हैं.
Scene 2
Curtain is pulled to expose the stage.There is a sofa set. 3 women are sitting, and talking, one amongst them is Bhawna.
NARRATOR
लड़कियां उनके भी हिसाब से घर में ही रहें तो अच्छा. इसका sum total ये मतलब निकलता है.....
Narrator leaves the stage.
one of the women speaks loudly.
BABITA
अरे तुमने सुना सीमा के बच्चे नहीं हो पा रहे?
ARADHANA
काफी उम्र हो गयी अब तो उसकी?
BHAWNA
30+ है.
ARADHANA
क्यों, क्या कोई checkup कराया?
BABITA
नहीं कराया तो नहीं पर आजकल IT Company में काम करने वालों के बच्चे हो ही नहीं रहे. मेरा एक चचेरा भाई है, वो भी same situation में है.
BHAWNA
Anuj का तो business है अपना?
BABITA
अरे उसमे थोड़ी कोई कमी होगी, वो बिलकुल healthy, 6 फीट लम्बा घोडा है, सीमा करती है न काम, IT company में.
BHAWNA
मगर, Kanika और उसका fiance तो दोनों IT company में काम करते हैं? मतलब Kanika ने छोड़ दी है नौकरी, पर bangalore जाके वही करना पड़ेगा फिर से!
BABITA
अच्छा?... अरे.... वैसे.... हर IT company वालों के यहाँ ऐसा थोडा होता है.
ARADHANA
पर भाभी जी, ये सब जो इतना काम करने वाले बच्चे हैं न, सब इसी वजह से है, अपने time पे जादा अच्छा था. अब इतना काम करोगे तो बच्चे पैदा करने पे ध्यान जाएगा ही नहीं. सारा ध्यान तो office में ही लगा रह जाता है. अब थोडा mind free हो तब तो थोडा दिमाग में आये भी, की चलो थोडा प्यार बांटते हैं. तब न जाके पैदा होंगे बच्चे. दिन भर पैसा पैसा करते रहेंगे, दौड़ते रहेंगे दुनिया भर में तो थक न जाएंगे, इतना थक जाएंगे पहले ही, तो कैसे प्यार बाटेंगे. बच्चे पैदा हो ही नहीं सकते ऐसे में.
BHAWNA
पर मैंने तो अखबार में पढ़ा था की इतनी दौड़ भाग से लडको में कमियाँ आ जाती हैं, लड़किओं को उतनी दिक्कत नहीं होती.
ARADHANA
अजी हाँ. पहले तो जैसे लड़के दौड़ भाग करते ही नहीं थे. आकाश तो sales manager थे, जब हमारी शादी हुई थी. वो तो शहर शहर भागा करते थे. इसका मतलब तो ये नहीं की हमारे बच्चे नहीं हुए. जी मैं बताती हूँ आपको. मैंने तो देखिये कोई काम नहीं किया न, आज देखिये, 2 बच्चे हैं मेरे, दोनों लड़के. अब शादी के बाद husband wife को इतना tension रहेगा, तो emotions बचेंगे कैसे, और emotions बचेंगे नहीं तो बहेंगे कैसे? और emotions बहेंगे नहीं तो अन्दर ही अन्दर दबे रह जाएँगे.... तो बच्चे पैदा कैसे होंगे?
Narrator Returns on Stage. Curtain falls
NARRATOR
दिमाग लगाना भी बेवकूफी है. किस्मत उसी दिन फूट गयी थी जिस दिन इंसान बन कर पैदा हो गए थे.
curtain falls in the background.
NARRATOR
और बाकी बची हुई कसर उसी दिन पूरी हो गयी थी जब इंसान होने के संग संग हिन्दुस्तानी बन कर पैदा हो गए. ये जो SOCIETY है, इसका FUNDAMENTAL बिलकुल गलत है. SPECIALLY, INDIAN SOCIETY का. यहाँ लोग इसलिए संग नहीं रहते की, कुछ तकलीफ होगी तो आपस में बैठ के कुछ SOLUTION निकालेंगे. यहाँ लोग संग इसलिए रहते हैं, जिससे हर TIME कोई न कोई पास रहे, बड़ाई करने वाला. जहां ये जताया जा सके, की हम कितने महान हैं.
curtain opened to expose the stage in the background. narrator leaves the stage.
Scene 3
Tables covered with red colored table cloth. Decorated as a party, stage is full of people. Everyone exquisitely dressed.
BHAWNA
कल रात मैं और संतोष वही picture देखने गए. वहाँ जाके पता चला Picture ban कर दी. बड़ा मन था मेरा Picture देखने का.
BHAGAT
Aunty, दूसरी वाली देख लेती?
BHAWNA
कोई और अच्छी लगी नहीं थी. ऊपर से वापस आते time कुछ बदमाश और पीछे पड़े गए.
BHAGAT
क्यूँ, क्या हुआ?
BHAWNA
अरे हुआ कुछ नहीं, हम लोग CP में Cold Drink पी रहे थे. वो लोग आके तालियाँ बजाने लगे. हम लोग वहाँ से जाने लगे तो थोड़ी देर पीछा किया फिर चले गए.
BHAGAT
किसी और बात पे तालियाँ बजा रहे होंगे?
BHAWNA
नहीं नहीं, वो हम लोग जैसे ही एक sip लेते थे तभी ताली बजा रहे थे.
on stage, in between there is a center stage on which a tall man climbs and makes announcement, as every one diverts his/her attention towards the stage.
SANTOSH
भाइयों और बहनों, आज कल हमारे देश में कुछ भी safe नहीं है. मैं आपलोगों का ध्यान इसी topic पे आकर्षित करना चाहूँगा. आज का दिन बड़ा शुभ है. आज मेरी बेटी ने मुझसे जान छुड़ाने का सबसे पहला step लेना है. वैसे देखा जाए तो बड़ी अच्छी बात है. यूँ तो हम हमेशा अपनी लड़कियों के कमरे के बाहर त्रिशूल ले कर खड़े रहते हैं. दुनिया भर की moral policing हमें याद रहती है. हम एक बड़ी मामूली सी बात भूल जाते हैं.
he waits or sometime, thinks, becomes very serious.
SANTOSH
जो की मैं अभी फिर से भूल गया हूँ. असल में, मैं भूला नहीं हूँ. मैं यूँ ही बेकार में यहाँ आपका attention divert करने के लिए खड़ा हो गया हूँ. मेरे पास कोई बात कहने के लिए है नहीं. 24 साल से business कर रहा हूँ. पता नहीं कितना लोहा बेचा मैंने, कितना लोहा इस घर को बनाने में लगाया. इतने बड़े शेहेर के बीच में. सिर्फ एक वजह थी.
he waits for sometime, looks at his visitors for sometime.
SANTOSH
मेरे पास बेकार का पैसा बहुत था, छुपाने के लिए कुछ जुगाड़ चाहिए था इसलिए ये घर बनवाया मैंने. आज मेरी बेटी ने ये घर छोड़ने के लिए पहला step almost ले लिया है. थोडा सा डर लग रहा है मुझे. अकेले रहेगी, वैसे तो दिल्ली में नहीं रहेगी.  पर अच्छा ही है. एक picture  है, कार्तिक नाम की. कल रात को देखने गया था मैं. पता चला Ban हो गयी है. आज सुबह शास्त्री जी से मिला था मैं. इसी को लेके बड़े खुश थे, शास्त्री जी. पर अगर देर रात में, कोई बदमाश कुछ गन्दगी मचाता है, तो हमारे शेहेर में, basic security भी नहीं है. ये अजीब activity पे कोई रोक नहीं है. पर एक picture पे culture खराब करने का blame लगा के उसे रोकना अजीब लगता है. अब आपका दिमाग चाटने के मूड में नहीं हूँ मैं. बस यही कहना था.
he steps down from the podium, and people start chatting once again. he goes and talks to Shastri Ji and Sharma Ji, who were there.
SHASTRI JI
भाई साहब, देखिये आजकल तो लड़के और लड़कियों का हो गया है दिमाग खराब. रात रात भर काम करते हैं दिन भर घूमा करते हैं. सोता कोई है नहीं और पैसा पैसा चलता रहता है
SHARMA JI
शास्त्री जी, 1970 नहीं है. और आजकल tolstoy fashion में है भी नहीं. आजकल लोग पढ़ते कम हैं काम जादा करते हैं.
SHASTRI JI
अरे काम से याद आया, कल मैं bank गया था. बड़ी खुबसूरत लड़की थी भई वहाँ. क्या कमाल के कपडे पहेन रखे थे. हर लड़का घुर रहा था.
SANTOSH
और आप संग में घुर रहे थे?
SHASTRI JI
अजी यूँ बन ठन के बैठी थी, अब एक लड़का तो बार बार कुछ पूछने उसी के पास जा रहा था.
SHARMA JI
तो आप क्या कर रहे थे?
SHASTRI JI
मैं क्या, कुछ नहीं. मैंने अपने पैसे लिए चलता बना.
In the background, Virag Mehta is staring at a girl who stands with 3-4 other girls, and chatting, she surrounded by a crowd, she wears a sleeveless white kurti. he goes on and pinches her, by her hand, and promptly and cleverly hides into the crowd.
Girl suddenly shouts in the party.
Everybody's attention is diverted towards them.
He moves hastily amidst the crowd and stands by the drinks counter.
bhawna responds immediately.
BHAWNA
क्या हुआ?
KANIKA
पता नहीं aunty, मुझे किसी ने....
looks around, visibly worried
KANIKA
छोडिये....
BHAWNA
बताओ बेटा
another girl speaks
RIA
aunty, वो एक मूछ वाले uncle चिकोटी काट के गए
BHAWNA
कौन, बताओ
RIA
उतना ध्यान से नहीं देख पाए, वो आये और भाग गए, इसने तो पीठ करके राखी, क्या ही देख पी होगी उसकी शकल.
BHAWNA
किसी और ने देखा होगा?
Shastri Ji intervenes
SHASTRI JI
अजी होना ही यही है, अब ऐसे बन के आएंगी लड़कियां तो..... यही होगा. और क्या, अब कल की ही बात है भई, मैं bus में था, अब एक लड़की खड़ी थी, और दो तीन लड़के थे..... बार बार टकरा रहे थे, वो भी ऐसे ही चिल्लाने लगी. अरे, इतनी दिक्कत हो रही थी तो उतर ही जाती
SANTOSH
शास्त्री जी, bus नहीं है, party है. जो भी है, उसे यहाँ से भागाउंगा अब मैं.
SHASTRI JI
अरे over react मत करिए भाईसाहब.... होता रहता है, भाई लोग, अपनी अपनी गप्पें चालू रखिये, कोई बड़ी बात नहीं हुई
everyone, resumes chatting, as the three continue.
SHARMA JI
कभी कभी मैं सोचता हूँ, हर औरत मेरी बीवी जैसी होनी चाहिए..... चपड़ देती सीधे मुह पे.
SHASTRI JI
अरे क्यों भाई, आपको पता भी है, कितने शरीफ लड़के थे, जब लड़की चिल्ला बैठी तो खुद उतर गए bus से. और ये तक बोल गए लड़की को, "बहन जी sorry, वो, हम हिन्दुस्तानी लड़के हैना, तो थोड़े बिगड़ गए हैं, कोशिश कर रहे हैं सुधरने की, कभी कभी गलती हो जाती है....."
in the background, Viraag Mehta is listening to the conversation amidst the three.
VIRAAG MEHTA
जी, मैं कुछ....
seeing him, the girl shouts again....
KANIKA
aunty, यही है
whole crowd turns their head towards them.
santosh makes a move
SANTOSH
मेहता जी, बेहतर यही होगा की निकल जाओ यहाँ से...
VIRAAG MEHTA
खत्री जी, मैं.......
SHARMA JI
देखिये जी, ऐसा है, अगर आपने ये काम किया है न, तो आप तो बस निकल जाओ
SHASTRI JI
अरे ऐसे कैसे, किसी ने देखा भी है इनको चिकोटी काट ते हुए....
santosh, changes his posture.
RIA
जी मेरे ख्याल से यही है
SHASTRI JI
ख्याल से नहीं बेटा, confirm करके बताओ. अब रोज एक सफ़ेद बिल्ली मेरे गद्दे गंदे कर जाती है. अब मैं ये थोड़ी कह सकता हूँ की शर्मा जी की पालतू बिल्ली है, इसके बावजूद की शर्मा जी की सफ़ेद बिल्ली बिलकुल उस बदमाश बिल्ली जैसी है.
SHARMA JI
अरे, ऐसे कैसे मेरी बिल्ली पे इलज़ाम लगा रहे हैं आप.
SHASTRI JI
अरे इलज़ाम लगाने का क्या मतलब होता है शर्मा जी. कोई court चल रहा है क्या?
SHARMA JI
पर ऐसे कैसे आप.....
SHASTRI JI
यार कमाल का आदमी है तू, बिल्ली की बुराई नहीं सुन सकता, बीवी से डरा रहता है... यहाँ दूसरी problem की बात हो रही है.
SANTOSH
यही तो दिक्कत है, बड़ी problem पे किसी का ध्यान ही कहाँ जाता है. वैसे यहाँ बहुत लोग हैं. किसी न किसी ने तो देखा ही होगा?
SHASTRI JI
किसी ने कुछ नहीं देखा है जी....... सब ख्यालो में खोये हुए हैं वैसे भी.
in between the narrator comes and whispers something in his father's year.
SANTOSH
ठीक है, सब लोग, time हो गया है. वो लोग भी आ ही गए हैं, तो थोड़ी देर बाद बात करेंगे इसको लेके.
Curtain falls
Scene 4
Curtain is pulled, on stage, there are two groups, on the right hand side (audience view), family members of the groom, and the groom. On the left hand side, we can see Santosh, Bhawna, Narrator, Bride, and guests. This is an engagement ceremony, so crowd isn't much as everyone greets each other and Santosh starts giving away sweets to them. He continues to pass on boxes one by one as the boy's father becomes nervous:
BOY'S FATHER
संतोष जी, बस करिए, ये क्या कर रहे हैं?
SANTOSH
अरे, ख़ुशी का मौका मिठाई तो चलेगी ही
BOY'S FATHER
पर इतनी मिठाई तो मैं खा ही नहीं पाऊंगा
SANTOSH
क्यों?
BOY'S FATHER
अरे मुझे diabetes है
SANTOSH
diabetes?
BHAWNA
बाप रे बाप
BOY'S MOTHER
(yells)
क्या?
she pulls him aside from the crowd.
BOY'S MOTHER
diabetes कब हुआ तुम्हे?
BOY'S FATHER
अभी 5 min पहले
BOY'S MOTHER
मतलब?
BOY'S FATHER
ओ हो, जान बुझ के बोला, वरना ये इतनी मिठाई पकड़ा रहे हैं जिसे ख़तम करते करते सच में हो जाएगा.
BOY'S MOTHER
अच्छा
they return to the welcoming ceremony
SANTOSH
आपने बताया नहीं, आपको diabetes है?
BOY'S FATHER
जी अगर मैं आपको बता देता तो क्या आप मिठाई की जगह दवाई gift करते?
SANTOSH
हैं जी?
BOY'S MOTHER
जी कुछ नहीं वो मज़ाक कर रहे हैं....
SANTOSH
अच्छा, हा हा, तो आपको नहीं है मतलब? (still skeptical)
BOY'S FATHER
काश होता
SANTOSH
जी?
BOY'S MOTHER
अरे अरे संतोष जी, इनके चुटकुलों से परेशान मत होइए, चलिए हम, आगे बढ़ते हैं, यहीं थोड़ी खड़े रहेंगे.
BHAWNA
हाँ बिलकुल बिलकुल.....
they all move towards the podium on which there is a sofa where two people can sit. An ideal, generic sofa to accomodate two who are going to be engaged. Bride and groom sit over there.
Photography session begins over there. one by one everyone goes on to the stage.
Bhagat and Ria come towards the front side of the stage, and start talking. as photography continues in the background.
BHAGAT
अच्छी लग रही है dress तेरी.
KANIKA
तुम भी काट लो चिकोटी
BHAGAT
इतना मूड क्यों off कर रखा है यार.
KANIKA
मैं काट लूँ, चिकोटी
BHAGAT
देख मुझे तो अच्छा ही लगेगा
KANIKA
क्या यार, बड़ी problem है.
BHAGAT
देख ऐसा है, अगर तू चाहती है की मैं महते की पिटाई लगा दूँ तो वो मैं कर सकता हूँ.
KANIKA
चले आये, ये न बोल दिया होता की हाँ मैंने देखा है उसको..... uncle के सामने
BHAGAT
अरे यार मैंने देखा ही नहीं, और बाकी दुनिया कोई seriously लेने को तैयार ही है तो मैं क्या करूँ, जिसने देखा भी होगा उसने तो कुछ बोला नहीं.
KANIKA
छोड़, तेरी कुछ समझ ही नहीं आया मैं क्या बोल रही थी. ये बता वैसे, तू नौकरी कब बदल रहा है?
BHAGAT
मिले तो बदलू, है ही नहीं.
KANIKA
15 हजार में चल रहा है तेरा काम?
BHAGAT
चल ही रहा है. वैसे 20 होने वाली है. promotion होने वाला है.
KANIKA
अरे वाह L2 support?
BHAGAT
हाँ
KANIKA
फिर तो तुझे picture दिखानी चाहिए.
BHAGAT
वो तू वैसे ही देख ले.
Shastri ji, intervenes
SHASTRI JI
picture तो मैं वैसे ही देख रहा हूँ.
BHAGAT
(angrily)
uncle, क्या चाहते हो? बीच में टांग अडाना ज़रूरी है क्या?
SHASTRI JI
टटपूंजिए हो, मेरी आधी उम्र के भी नहीं होगे. और, बात तो देखो कैसे कर रहे हो.
BHAGAT
और, मेरी समझ में आ रहा है आपकी दोनों औलादें भाग क्यूँ गयी आपको छोड़ के
SHASTRI JI
बेटा, अपने काम से मतलब रखो
BHAGAT
चचा, आप भी अपने काम से मतलब रखिये.
Shastri Ji walks away, frowning.
KANIKA
क्या खूंसट है साला
BHAGAT
यही तो दिक्कत है. एक तो इनके जैसे बहुत सारे हैं, दुसरे जो और हैं इनके जैसेवो देश चला रहे हैं. ये देश नहीं चला पा रहे तो ज़बान चला रहे हैं.
Kanika and Bhagat move into the crowd. As Viraag Mehta comes out of it, staring at Kanika as Santosh sees his behavior and stops him.
SANTOSH
दिखने में बड़ी खूबसूरत है न मेहता जी
VIRAAG MEHTA
हैं जी, (surprised), वो जी हे हे, अब क्या बताऊँ
SANTOSH
बताना कुछ नहीं है, बाहर का रास्ता उधर है
VIRAAG MEHTA
जी मैं तो माफ़ी मांगने आया था, वो तो बात ही कुछ और होने लग गयी
from behind Boy's father comes in and starts listening.
BOY'S FATHER
क्या हुआ संतोष जी?
SANTOSH
अरोड़ा जी ये हमारे मेहमान हैं, विराग मेहता जी, लड़की छेड़ रहे थे
BOY'S FATHER
किसी ने देखा इन्हें छेड़ते हुए?
SANTOSH
मतलब?
BOY'S FATHER
खत्री जी, क्या फर्क पड़ता है इन्होने छेड़ा हो या न छेड़ा हो. अंधों की बारात है यहाँ तो, ये छेड़ लेते हैं हैं क्यूंकि इन्हें ऐसा करने देते हैं. छोडिये इनको, आप मेरे साथ आइये, Photo खिचानी है.
VIRAAG MEHTA
जी, तो मैं जाऊं?
BOY'S FATHER
कहाँ?
VIRAAG MEHTA
घर.
BOY'S FATHER
अच्छा, मैंने सोचा भाड़ में. जाइये. जहां जाना है जाइये.
Viraag Mehta leaves the stage, as both of them go upto the podium, mothers of the couple step down, and Bhawna comes to the front of the stage and starts talking to Sharma Ji.
BHAWNA
भाभी जी आई क्यूँ नहीं?
SHARMA JI
जी, वो, Ladakh गयी है. 
BHAWNA
अरे वाह, आप नहीं गए?
SHARMA JI
जी मैं परसों जा रहा हूँ. काम था office में तो इनको पहले भेज दिया,
BHAWNA
कोई संग है?
SHARMA JI
नहीं, गीत है साथ में.
BHAWNA
अचानक से ladakh?
SHARMA JI
Rally है, वहाँ.
BHAWNA
तो आपको डर नहीं लगता? मतलब अकेले, वो दोनों?
SHARMA JI
नहीं, उतना कुछ नहीं है. सब arrange कर दिया है मैंने वहाँ. 
BHAWNA
मुझे तो डर लग रहा है, अपनी लड़की को इतना दूर भेजने से.
SHARMA JI
भाभी जी, कुछ नहीं होगा. आराम से जाने दीजिये. काम करती रहेगी तो झगडे भी छोटी छोटी बातों पे emotional level के नहीं करेगी. जादा से जादा यही होगा उसे बाज़ार जाने का मन करेगा, और दामाद का घर में सोने का.
Narrator, Comes forward, talks to both of them.
NARRATOR
mummy, चलिए, Rings exchange करानी है आपको. चलिए, uncle.....
As everyone pays attention to them, the couple exchange their rings and guests clap, as the curtain falls.
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--------------THE END--------------

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