Thursday, 19 March 2015

मैं यहीं हूँ

एक तरकश है,
मेरे बांए हाथ तले,
मैं चालीस कोस दूर,
बांड़ बटोर के ले आउंगा,
जब तुम थक जाना,
कमान झुका देना,
इसी तरकश में,
पहाड़ों से,
नदियों से,
बरसातों से,
ठंडा पानी चुरा लाउंगा ।
~
कमान झुका भर देना,
रथ मैं तुम्हारा,
खींच तान के,
घर ले आउंगा ।
अगर दो घुटने छिल भी गए,
पर एक परिंदा,
गर घर को उड़ भी न सका,
तो बाज़ के बाज़ुओं का क्या होगा?
जब कल के बादल मायूस होंगे,
मैं फट से पर्दे लगा दूंगा,
पर मौसम गर यूं ही मायूस हुआ,
तो आज के आसुंओं का क्या होगा?
~
रोज़ रोज़ तुम,
यों अकेले,
हर वीर,
हर वार,
हराते हो और,
कहते हो कल लड़ लेना,
पर कल लड़ना नहीं पडेगा।
मैं यहिं हूं,
और देख रहा हूं,
कंधा तुम्हारा,
कमान तुम्हारी,
अब तुम्हें और लड़ने नहीं दूंगा,
अब तुम्हें,
यूं थकने नहीं दूंगा ।।
~
SaलिL

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