आज गले में कुछ अटका सा है,
वक़्त अटक सा गया है सीने में,
बातें कुछ निकल नहीं रही,
कुछ रोज़ यूँ ही,
नैन सपनो से परे हो जाते हैं,
आज मन नहीं है कुछ कहने का,
फिर कभी जी लेंगे |
थोड़े थोड़े घर छोटे होते जा रहे हैं,
भीड़ बढती जा रही है,
राहें घटती जा रही हैं,
बदन चरमरा सा गया है,
मर्जियां काटने लगी हैं,
आज मन नहीं है चिल्लाने का,
फिर कभी जी लेंगे |
धडकनों को मोहब्बत का शौक नहीं अब,
सपनो को उम्मीदों का शौक नहीं अब,
चाहतों को तसल्ली का शौक नहीं अब,
गलती किसी की नहीं,
ये ढांचा बना ही रेत का था,
आज मन नहीं है खुद को माफ़ करने का,
फिर कभी जी लेंगे ||
~
SaलिL
वक़्त अटक सा गया है सीने में,
बातें कुछ निकल नहीं रही,
कुछ रोज़ यूँ ही,
नैन सपनो से परे हो जाते हैं,
आज मन नहीं है कुछ कहने का,
फिर कभी जी लेंगे |
थोड़े थोड़े घर छोटे होते जा रहे हैं,
भीड़ बढती जा रही है,
राहें घटती जा रही हैं,
बदन चरमरा सा गया है,
मर्जियां काटने लगी हैं,
आज मन नहीं है चिल्लाने का,
फिर कभी जी लेंगे |
धडकनों को मोहब्बत का शौक नहीं अब,
सपनो को उम्मीदों का शौक नहीं अब,
चाहतों को तसल्ली का शौक नहीं अब,
गलती किसी की नहीं,
ये ढांचा बना ही रेत का था,
आज मन नहीं है खुद को माफ़ करने का,
फिर कभी जी लेंगे ||
~
SaलिL
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