Thursday 10 April 2014

जला दो मुझे

जला दो मुझे,
एश, वेश, परमेश, सर्वेश,
सब एक ही है,
पचास नौटंकियाँ मेरी,
होंगी रोज़,
पचास और बहाने होंगे,
दरियाई घोड़े हैं हम,
गधों और जानवरों के जंगल में,
कहने को इंसान हैं हम,
अरे क्या करूँगा,
इतने महल बना के,
जहां सांस भी कोयला फूंकती है,
धडकनों का ऐसा शोर है,
यहाँ खुद की आवाज़ भी चुभती है,
अरे जला दो मुझे,
एक कोना कहीं खली होगा,
चार पैसे कहीं बचेंगे,
कुछ भला होगा,
किसी का,
कुछ बहाने कम होंगे,
कुछ तकलीफें कम होंगी,
जला दो मुझे ||
~
SaलिL

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