चल फिर कभी कहीं और
फिर मिलेंगे किसी रोज़
बैठ कर मीठे नीम्बू शरबत में
शेहद घुलते
और ठंडी बर्फ पिघलते देखेंगे
ढेर सारी गप लगाएंगे
आज दो पल का दुःख बांटते हैं
फिर न जाने कब मौका मिले
आज तो कुछ मुसीबत से जूझते रहे
कुछ देर भागते रहे मुसीबत से दूर
कल शायद कुछ नया हो
क्या पता फिर कब मिलेंगे
दो पल की खुशियाँ बाटेंगे
चल फिर कभी कहीं और
फिर मिलेंगे किसी रोज़ ||
फिर मिलेंगे किसी रोज़
बैठ कर मीठे नीम्बू शरबत में
शेहद घुलते
और ठंडी बर्फ पिघलते देखेंगे
ढेर सारी गप लगाएंगे
आज दो पल का दुःख बांटते हैं
फिर न जाने कब मौका मिले
आज तो कुछ मुसीबत से जूझते रहे
कुछ देर भागते रहे मुसीबत से दूर
कल शायद कुछ नया हो
क्या पता फिर कब मिलेंगे
दो पल की खुशियाँ बाटेंगे
चल फिर कभी कहीं और
फिर मिलेंगे किसी रोज़ ||
No comments:
Post a Comment