Monday, 15 October 2012

फिर मिलेंगे

चल फिर कभी कहीं और

फिर मिलेंगे किसी रोज़

बैठ कर मीठे नीम्बू शरबत में

शेहद घुलते

और ठंडी बर्फ पिघलते देखेंगे

ढेर सारी गप लगाएंगे

आज दो पल का दुःख बांटते हैं

फिर न जाने कब मौका मिले

आज तो कुछ मुसीबत से जूझते रहे

कुछ देर भागते रहे मुसीबत से दूर

कल शायद कुछ नया हो

क्या पता फिर कब मिलेंगे

दो पल की खुशियाँ बाटेंगे

चल फिर कभी कहीं और

फिर मिलेंगे किसी रोज़ ||

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