Tuesday, 7 August 2012

दूर कहीं....

आ चल भाग चलें
इस शोर से
कही दूर कही भी
जहां रोज सुबह
कुछ नया सोचने का मन करे
जहां हर दोपहर
किसी गहरी सच्चाई को ढूंढते
जहां पे
रंग महसूस होते
हरे जंगले के बीच तालाब होते
सफ़ेद बर्फ से ढके पहाड़ होते
जहां रोज शाम को
बारिश होती
जहां लोग होते
खुशियाँ होती
आ चल भाग चलें
कहीं दूर कहीं भी
जहां रोज शाम को बारिश होगी
खुशियाँ होंगी
वहीं कहीं किताबों की अलमारियों के बीच
या किसी चाय की दूकान पे
उसी किसी बरसती शाम में
कहानियां सुनाएंगे सबको ||

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