Monday, 1 July 2013

बातें मेरी...

खुली आँखों से,

मैं एक सपना देखता हूँ,

जिसमें मैं तुम्हे देखता हूँ,

तुम्हारी आँखें देखता हूँ,

जो मुझे देखती हैं,

यूँ तो अजीब सी,

गुदगुदाती चुटकुले सी लगती हैं,

बातें मेरी,

पर फिर भी,

मैं एक सपना देखता हूँ,

जिसमें मैं तुम्हें देखता हूँ,

तुम्हारी आँखें देखता हूँ,

जो मुझे देखतीं हैं,

और एक मासूम सी मुस्कान दिखाई देती हैं,

जिसकी बुझने की कोई सूरत नहीं,

पूरी दुनिया भर की तसल्ली उसी मुस्कान में,

बटोर रक्खी हैं तुमने,

यूँ ही मन बेमन,

तुम्हे मैंने अपने नर्म से,

गर्म से फर वाले कोट में,

खुश्क सी सर्द से छिपा लिया,

तुमने उस अधूरे से खेस में,

अपनी आँखें बंद कर ली,

अपनी उसी ख़ुशी भरी मुस्कान संग,

अपनी दुनिया भर की तसल्ली को,

एक जगह बटोर कर महफूज़ कर लिया,

और मैंने उसी वक़्त,

अपने सपने में वक़्त को रोकने की कोशिश की,

बर्फ की बूंदे बरसती गयीं,

तुम मुस्कुराती रही,

मैंने तुम्हें अपने नर्म से,

गर्म से फर वाले कोट में,

ओढ़ कर रक्खा,

और महसूस करता रहा,

ठंडी ठंडी सी बर्फ की बारिश,

तुम्हारी मुस्कान,

जिसे तुमने,

अपनी आँखों में ओढ़ रखा था,

और अपनी साँसे,

मैंने फिर वक़्त को रोकने कि कोशिश की,

जो कि रुका नहीं,

मेरा सपना,

किसी नए मकान के,

हरे से आँगन में,

बीती हुई बारिश की बूंदों की तरह,

घुल गया,

और वहीँ मेरी वही बातें,

जो अजीब सी,

गुदगुदाती चुटकुले सी लगती थीं,

ख़तम हो गयीं ||

~

SaलिL

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