Tuesday, 28 May 2013

चंद पल सो लेते हैं...

आजकल यूँ ही बस,
अजीब से होश की कमी मेहसूस होती रहती है,
साफ़ दिखना थोडा कम हो गया है,
मायूसी की तो आदत थी,
हमेशा से,
होश गँवारी की तो उम्मीद नहीं थी,
काफी थका देने वाली आदतें हैं हमारी, 
पर आजकल आवाजों से डर भी लगने लगा है,
लोग चलते हैं,
आते हैं,
जाते हैं,
कोई आवाज़ इंसान की सुनाई नहीं देती,
पता नहीं कोई शिकायत भी नहीं करता,
शायद तकलीफें सुलझती नहीं शिकायतों से,
इसलिए सब चुप हो गए हैं,
शायद यही ठीक हर हिसाब से,
पर कहीं बहुत देर,
बहुत पहले तो नहीं हो गयी?
पता नहीं,
मतलब ढूँढने का,
कोई मतलब नहीं,
चंद पल सो लेते हैं,
चाँद को ढूंढते ढूंढते,
रात बीत जाएगी, 
क्या पता सुबह कुछ अच्छा ले आये,
पर कहाँ लाती है,
सुबह तो बस मज़ाक है,
असली इंतज़ार तो रात का है,
कब घर पहुंचे,
और कब सो गए, 
बस उन दो पलों का इंतेज़ार रहता है,
जब कुछ देर सो लेते, 
आजकल सो कर उठते हैं,
तो भी थकान रहती है,
हो गया जो होना था,
थमना तो नहीं चाहते थे, 
पर मजबूरी हो गयी शायद,
शायद कई सारी चीज़ें और हैं,
जिनपे मेरा ध्यान नहीं जाता,
पर सपने कुछ जादा बो दिए,
उम्मीदों के बगीचों में,
अब उगने लगे हैं,
नाज़ुक से फूल,
उन बेलों में,
पर अब उनको भी सीचने का मन नहीं करता,
बहुत थकान है, 
चंद पल सो लेते हैं, 
कुछ खो देंगे सो कर,
ऐसा सिखाया है हमें,
पर अब नुकसान के भी मायने बदल गए,
होगा तो देखा जाएगा,
वरना झेला जाएगा,
कुछ खो देंगे तो क्या फर्क पड़ेगा,
कुछ खोने के लिए,
उतना कुछ बचा भी नहीं,
चंद पल सो लेते हैं, 
वरना चाँद को ढूंढते रहेंगे,
रात यूँ ही गुज़र जाएगी,
और सुबह फिर थकान से जूझते रह जाएँगे ||

~

SaलिL

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