Tuesday, 28 August 2012

अमनबाग़

 रौशनी के फूल थे

दूर कही किसी बगिया में

चारों तरफ नीली शाम में

नारंगी संतरे थे

जहां पतंग उडाती थी मासूमियत

कहते है कोई रह नहीं पाया वहाँ

एक दिन हर एक पतंग कहीं खो गयी

वो मासूमियत किसी और सच्चाई की तलाश में

कहते है आज भी कोई परिंदा वापस आता है

कभी कभी उसी बगिया में

खेलता है गुनगुनाता है

पर बहुत शान्ति है वहाँ

कहते है कोई रह नहीं पाया वहाँ ||

Tuesday, 7 August 2012

दूर कहीं....

आ चल भाग चलें
इस शोर से
कही दूर कही भी
जहां रोज सुबह
कुछ नया सोचने का मन करे
जहां हर दोपहर
किसी गहरी सच्चाई को ढूंढते
जहां पे
रंग महसूस होते
हरे जंगले के बीच तालाब होते
सफ़ेद बर्फ से ढके पहाड़ होते
जहां रोज शाम को
बारिश होती
जहां लोग होते
खुशियाँ होती
आ चल भाग चलें
कहीं दूर कहीं भी
जहां रोज शाम को बारिश होगी
खुशियाँ होंगी
वहीं कहीं किताबों की अलमारियों के बीच
या किसी चाय की दूकान पे
उसी किसी बरसती शाम में
कहानियां सुनाएंगे सबको ||