रौशनी
के फूल थे
दूर कही
किसी बगिया में
चारों तरफ नीली
शाम में
नारंगी संतरे थे
जहां पतंग
उडाती थी मासूमियत
कहते है
कोई रह नहीं
पाया वहाँ
एक दिन
हर एक पतंग
कहीं खो गयी
वो मासूमियत
किसी और सच्चाई
की तलाश में
कहते है
आज भी कोई
परिंदा वापस आता
है
कभी कभी
उसी बगिया में
खेलता है गुनगुनाता
है
पर बहुत
शान्ति है वहाँ
कहते है
कोई रह नहीं
पाया वहाँ ||