Sunday, 7 December 2014

फिर वही

आज शोर कुछ बढ़ा दें,
यूँ ही परसों के टूटे खाब भुला दें,
दो चम्मच शेहेद के,
गले में घुला के,
कल की नयी तकलीफें भुला दें. 

कल चार खाब और हैं,
टूटने को,
आज थोड़ी मौज कर लेते हैं,
किसी पुराने दोस्त के घर चलते हैं,
उठा ले चलते हैं उन गलियों में उसे,
जहां वो सपने देखे थे,
कुछ रंगीन कुछ खरे.

सपने तो क्या ही बचते,
वो जगह बची रह गयीं,
उन कोनो में थोडा कुछ भुला याद आया,
आज थोड़ी मौज कर लेते हैं,
कल चार सपने और हैं टूटने को,
आज थोड़ा शोर बढ़ा देते हैं.

~

चार चम्मच शेहेद,
नीम्बू में मिलाकर पीने से,
एक मीठी खटास रह गयी है लबों पे,
कल शोर काफी था,
इतने शोर का भी मैं शौक़ीन नहीं,
पर शौकीनों को देख कर बुरा नहीं लगा,
माहौल भी ठीक ही था,
लोग भी खूबसूरत थे,
अपने ही शौक नहीं तो दुनिया में बुराई क्या?
हमने नहीं बात बढाई,
तो दूसरों की मौज में बुराई क्या?

~

चार सपने कल फिर टूटने हैं,
कल शोर बढ़ा तो ठीक ही था,
आज सोचता हूँ घर हो आऊँ,
कुछ दिन ही हुए,
घर गए,
पर फिर हो आता हूँ,
फिर एक चम्मच शेहेद निम्बू में मिलाकर पी जाऊंगा,
थोडा आराम और कर पाउँगा.

कुछ चोटें हैं शरीर पे,
और शरीर में,
कुछ दिन मिलेंगे आराम के,
शायद ये घाव भर जाएँ,
फिर और आगे चलेंगे,
पता नहीं किस से कहाँ मिलेंगे,
न जाने कौनसे कोने,
न जाने कौनसी इस गड़ी हुई ख्वाहिशों के पिटारे के,
फिर से खुलेंगे ||


~

SaलिL


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