Sunday, 6 October 2013

काश

काश दो बातें कह पाते,
जो यूँ ही अपना मतलब बदल न लेतीं,
काश कहीं कोई अपना,
कुछ पराया,
कुछ अनजान सा न लगता,
काश दुनिया में लोग हमेशा नाराज़ न रहते,
काश उम्मीदें थोड़ी कम होतीं,
काश कुछ बातें उन सब से कह पाते,
जो सुन के यूँ ही टाल न देते,
कुछ सोचते,
कुछ समझते |

काश कुछ लोग कम होते,
हर तरफ,
काश आगे बढ़ने का ज़ोर न होता,
काश कुछ सच्चियां,
अपना मुंह न मोड़ लेतीं,
काश थोड़ी आजादी होती,
हर चीज़ की,
काश, दो बातें कह पाते,
जो समझी जातीं,
जिसके माएने नापे न जाते,
जिसके जवाब न होते,
काश बातें कुछ कम होतीं |

साँसे हैं,
क्योंकि हार नहीं मानी अब तक,
कुछ न कुछ मना लेता है,
मन यूँ ही खुद को,
कोई वजह नहीं है,
पर साँसे हैं,
काश साँसे भी कुछ कम होती,
तो बातें भी कुछ कम होती,
उम्मीदें भी कुछ कम होतीं,
और तकलीफें भी,
कुछ दिल्लगी कम होती,
कुछ सपने कम होते,
कुछ चाहतें कम होती,
कुछ बोझ कम होते |

काश दो बातें कह पाते,
जो काटी न जाती,
जिनमे, जिनसे,
कुछ साबित करने की इच्छा नहीं होती,
जिनसे और दो बातें पैदा न होती,
जिनसे मतलब न निकलते,
जिनसे बस तकलीफें बंट सकतीं,
कुछ घट सकतीं,
पर ऐसा कभी हुआ कहाँ,
इंसान हैं हम,
समझने की औकात हम में नहीं,
हम शोर में खोने को तैयार,
और शोर में शोर को बढाने को तैयार,
हम अपने शोर को शोर से नापते हैं,
और अपने शोर को शोर से नाप कर,
खुद की बड़ाई करते हैं,
काश हम किसी से कुछ न कह पाते,
काश, हम चुप रह पाते,
थोडा सुन पाते,
काश, कोई सामने वाला दो बातें कह पाता,
जिसे सुनकर,
हम सिर्फ या तो याद रख सकते,
या सिर्फ भूल सकते ||